संयुक्‍त परिवार अर्थात आम के आम ' गुठलियों के दाम?

कहावतें अनुभवों का खजाना समेट कर चंद शब्‍दों का अमूल्‍य इतिहास अपनी तिजोरी में छिपा कर रखती है। आम का वृक्ष जड से लेकर गुठलियों तक के सारे अंगो को मानव कल्‍याण के लिए समर्पित कर देता है। आम की जड,तना,शाखाऐं अग्निहोत्र के काम आकर पत्तियों को मंगल कार्यो में तोरण बना कर लटकाया जाता है। आम की छाया के नीचे विश्राम कर थका हुआ इन्‍सान अपनी सारी थकान भूल कर तरोताजा हो जाता है। कच्‍चा आम लोंजी,चटनी,पना आदि के रूप में मानव को स्‍वाद की अनूभूति कराते हुए बीमार होने से बचाता है। पका रसीला आम चूस कर खाने ,रस बना कर खाने और रस के पापड बनाने के काम आता है। आम की गंठली पुन बीज बनकर तथा दवाई के रूप में अपने दायित्‍व का निर्वहन करती है। इसीलिए कहा गया है आम के आम और गुठलियों के दाम।
 '' देर आयद दुरूस्‍त आयद'' या सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते'
की तर्ज पर फिर से संयुक्‍त परिवार रूपी आम के  वृक्ष की शीतल और घनी छाया में
आ जावे तो आम के मीठे फल की तरह सभी सुख उसकी गोदी में आ जावेगें।
        आम के वृक्ष की तरह ही संयुक्‍त परिवारभी  जागरण से शयन तक जनहिताय, जनसुखाय के काम ही करता रहता है। कहावत है, कि एक फुल से माला नहीं बनती उसके लिए कई रंगों के फूल चाहिए। इसी प्रकार संयुक्‍त परिवार की माला भी कई फूलों  जैसे कोमल रिश्तों  यानी दादा दादी, ताऊ ताई, माता पिता, भाई बहन आदि से गूथ कर बनती है ।
        संयुक्‍त परिवार का पहला शब्‍द ''स'' कई शब्‍दों की उर्जा का समेटे हुए है जैसे सुख, सेवा, स्‍वागत,
समानता, सरलता, मेहमान नवाजी आदि आदि। भले ही संयुक्‍त परिवार,एकल परिवारों में सिमट रहे हैं, किन्‍तु वे अपने महत्‍व को बरकरार बनाये हुए हैं। हम महसूस करें की संयुक्‍त परिवार  की प्रभात में  कितनी ताजगी समाहित है। अल सुबह अनाज पीसती घटिटयों  के सुर से सजी महिला संगीत की मीठी मीठी धुन, कुवों पर खनकती  गगरा बटलोई  के मिलन की मधुर ध्‍वनि, प्रणाम और आशीर्वाद की सरसराहट, मां की थपकी से बच्‍चों का जागना, आदि आदि। संयुक्‍त परिवार की सुबह, दोपहर, सांझ और रात के अंक में कर्त्‍तव्‍य, कर्मठता, ममता और आत्‍मीयता का भाव छिपा रहता था। संयुक्‍त परिवार के सदस्‍यों के दिलों में धन लिप्‍सा का भाव न होकर एक दूसरे के दिलों में समा जाने की जिजिविषा रहती थी। घर का मुखिया सबके अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य  का ध्‍यान रखते हुए कहा करते थे, कि सुबह का आहार राजा की तरह, दोपहर का युवराज की तरह और रात का भोजन कंगाल  की तरह याने हलका  करना चाहिए। बीमारीयों का संयुक्‍त  परिवार से कोई रिश्‍ता नहीं होता था। यदि कुछ हुआ भी तो दादी नानी की दवाई घर के चौके की डिस्‍पेन्‍सरी से दे दी जाती थी। परिवार के सभी सदस्‍य  सुरक्षि‍त और स्‍वतंत्र  जीवन यापन  करते थे।
      अब आज के एकल परिवार के हालात पर गौर करें तो मोरनिंग की शुरूवाद शमशान सी वीरानी से शुरू होती है। देरी से उठना, झाडू, पोछे, बर्तन और खाना बनाने वालीयों पर निर्भर रहना, बच्‍चे आया के सुपुर्द, सौंदर्य प्रसाधनों की भरमार, क़ृत्रिम हंसी का झलकना, नौकरी का टेंशन, चेहरे पर चिडचिडाहट, बुजुर्गो से एलर्जी, आत्‍मविश्‍वास की भारी कमी, असुरक्षितता, पति पत्‍नी की नोक झोंक जैसे अनेक जोखीमों के जख्‍मों से पीडित होता है। कितना कुछ कष्‍ट है,  एकल परिवार में किन्‍तु फिर भी थोथा चना बाजे घना  की तर्ज पर नकली सुख का जीवन जी रहे हैं।
      '' देर आयद दुरूस्‍त आयद'' या सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते' की तर्ज पर फिर से संयुक्‍त परिवार रूपी आम के  वृक्ष की शीतल और घनी छाया में आ जावे तो आम के मीठे फल की तरह सभी सुख उसकी गोदी में आ जावेगें। एकल परिवार की ग्रहिणियां संयूक्‍त परिवार में यदा कदा कुकुरमुत्‍तों की तरह उत्‍पन्‍न होने वाले वाद विवादों नजर अंदाज कर एकल से विविधता में आने का साहस करें तो अधिक लाभ में रहेगी ।
  उद्धव जोशी, एफ 5/20 एलआयजी ऋषिनगर उज्‍जैन
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
इसका कोई भी प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा हे|सभी समाज जनों से सुझाव/सहायता की अपेक्षा है|