नैना देवी दर्शन के बाद मणिकरण ने हमारा मन मोह लिया।

नैना देवी दर्शन के बाद मणिकरण ने हमारा मन मोह लिया। 
 कुरुक्षेत्र  , पिंजौर गार्डन पंचकूला हरियाणा  , चंडीगढ़ , से हिमान्चल की ओर आगे की हमारी यात्रा जारी रही। अगले ही दिन प्रात: 5 बजे नेना देवी की ओर चल पड़े।चंडीगढ़ से NH 21 पर 106 किलोमीटर दूर नयना देवी की ओर चल दिये। राह में लगभग 45 KM चलकर एक पेट्रोल पंप पर विभिन्न प्रकार के पशु खरगोश, चूहे आदि, ओर पक्षी जिनमे कई रंगों के तोते, मेना, लवबर्ड्स ओर शतुर मुर्ग भी थे, जो हमने प्रत्यक्ष में पहली बार देखे।

 हिमालय की पर्वत श्रेणियों के बीच में सुंदर नजारे देखते हुए दूर से नैना देवी मंदिर भी दिखाई दिया।लगभग 8-30 प्रात: मंदिर के समीप पहुँच गए। चंडीगढ़ की तुलना में मोसम ठंडा प्रतीत हो रहा था,  तापमान 25 डिग्री C लगभग होगा।    
    हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर नैना देवी मंदिर का भव्य मंदिर है। 
     नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।  इस स्थान तक पर्यटक अपने निजी वाहनो से भी जा सकते है। 
   मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि.मी. की पैदल यात्रा कि जाती थी परन्तु अब मंदिर तक जाने के लिए रोप वे (उड़्डनखटोले किराया रु-110/-आना जाना )  पालकी आदि की भी व्यवस्था भी है। पहाड़ी पर स्थित मदिर के पास तक आजकल छोटी टेक्सी भी
जाने लगी है, इसका किराया आना जाना रु 50/- है।  यह मंदिर समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।  मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेक शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।
 चंडीगढ़  से सीधे कुल्लू 310 KM है। रात्री लगभग 9 बजे कुल्लू पहुँच गए, यहाँ तापमान 18-20 डिग्री C था। दिन की थकान मिटाने पूर्व निर्धारित होटल में पहुँचकर रात्री भोजन कर विश्राम किया। 
 दोपहर बाद खाना यहाँ खाकर हम अब नैना देवी से वापिस 11 km चलकर NH 21 पर कुल्लू जाने के लिए  बड़ गए। नेना देवी से कुल्लू 204 KM दूर है।
  मणिकर्ण  
    प्रात: 8 बजे लगभग मणिकरण की ओर चल दिये जहां एक घंटे में पहुँच गए। यहाँ थोड़ा अधिक ठंडा मोसम था, पर धूप निकली होने से अच्छा लग रहा था।  यह स्थान कुल्लू से लगभग 42 KM दूर है। मणिकर्ण  कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती

घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है। यह हिन्दु और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से 1760  मीटर [छह हजार फुट] की ऊँचाई पर स्थित है और भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं।
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मणिकर्ण अपने गर्म पानी के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रुप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के कुंड मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। इन्हीं गर्म कुंडो में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बडे-बडे गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदंपती इकट्ठे धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं।  उन्हें लगता हैं कि जैसे यह उनकी जीवन का पहला खुला रसोईघर है, जो सचमुच रोमांचक भी है।  यहां पानी इतना खौलता है कि भूमि पर पांव जलाने लगते हें । यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक सामान ९४ डिग्री सेल्सियस रहता है। कहते हैं कि इस पानी की चाय बनाई जाए तो आम पानी की चाय से आधी चीनी डालकर भी दो गुना मीठी हो जाती है।
     मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ के पानी में रेडियम है।
     मणिकर्ण में बर्फ भी खूब पड़ती है, मगर ठंड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर के अंदर बनाए विशाल स्नानागार में गर्म पानी में आराम से नहाया जा सकता है, जितनी देर चाहें, मगर ध्यान रहे, अधिक देर तक नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं। पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रबंध है। गुरुद्वारे में एक गर्म गुफा भी है, यहाँ का तापमान लगभग 40 डिग्री के आसपास होगा। आयुर्वेद के मान से 'शुष्क स्वेदन ' का लाभ मिलता है। यहां लेटने से वात रोगों में लाभ होता है। 
   दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की आपुर्ति की जाती है, जिसके लिए विशेष रुप से पाइप भी बिछाए गए हैं। अनेक रेस्त्राओं और होटलों में यही गर्म पानी उपलब्ध है। बाजार में तिब्बती व्यवसायी छाए हुए हैं, जो तिब्बती कला व संस्कृति से जुडा़ सामान और विदेशी वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं। साथ-साथ विदेशी स्नैक्स व भोजन भी। हमने यहाँ ताजी चैरी,स्ट्रोबेरी ओर खुमानी खूब मनभर कर खाई। 
   

गुरुद्वारे के विशालकाय किलेनुमा भवन में ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है। छोटे-बड़े होटल व कई निजी अतिथि गृह भी हैं। ठहरने के लिए तीन किलोमीटर पहले कसोल भी एक शानदार विकल्प है। मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है।  सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है किगुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है।
     यहाँ पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु, और भगवान शिव के मंदिर हैं।  हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा़। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी। यहां रघुनाथ मंदिर भी है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिवजी का भी एक पुराना मंदिर है। इस स्थान की विशेषता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।
   मणिकर्ण अन्य कई मनलुभावन पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है। हम यहाँ नहीं गए पर जानकारी प्राप्त की है। यहां से आधा किमी दूर ब्रह्म गंगा है, जहां पार्वती नदी व ब्रह्म गंगा का संगम  हैं। यहां थोडी़ देर रुकना प्रकृति से जी भर मिलना है। डेढ़ किमी दूर नारायणपुरी है, 5 किमी दूर राकसट है, जहां रूप गंगा बहती हैं। यहां रूप का आशय चांदी से है। पार्वती पदी के बांई ओर 16  किलोमीटर दूर और 1600  मीटर की कठिन चढा़ई के बाद आने वाला सुंदर स्थल पुलगा जीवन अनुभवों में शानदार बढोतरी करता है। इसी प्रकार 22 किमी दूर रुद्रनाथ लगभग 8000 फुट की ऊंचाई पर बसा है और पवित्र स्थल माना जाता रहा है। यहां खुल कर बहता पानी हर पर्यटक को नया अनुभव देता है। मणिकर्ण से लगभग 25 किमी दूर, दस हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल सोतों के लिए जानी जाती हैं। यहां के पानी में भी औषधीय तत्व हैं। एक स्थल पांडव पुल 45  किमी दूर है। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांचप्रेमी लगभग 115 किमी दूर मानतलाई तक भी जा पहुंचते हैं। मानतलाई के लिए मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं इत्यादि साथ ले जाना नितांत आवश्यक है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति को साथ होना बहुत आवश्यक है। संसार से विरला, अपने प्रकार के अनूठे संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाला अद्भुत ग्राम मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15  किमी पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है। मलाणा के लिए नग्गर से होकर भी लगभग 15 किमी. पैदल रास्ता है। इस प्रकार यह समूची पार्वती घाटी पर्वतारोहिण के शौकीनों के लिए स्वर्ग के समान है।
    कितने ही पर्यटकों से छूट जाता है कसोल, जो कि मणिकर्ण से तीन किमी पहले आता है। यहां पार्वती नदी के किनारे, पेडों के बीच बसे खुलेपन में पसरी सफेद रेत, जो कि पानी को हरी घास से विलग करती है,यहां की दृश्यावली को विशेष बना देती है। यहां ठहरने के लिए हिमाचल पर्यटन के हट्स भी हैं।
     मणिकर्ण में घूमने के दौरान आकर्षक पेड पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के मेल से रची लुभावनी पर्वत श्रृंखलाओं के दृश्य मन में बस जाते हैं। प्रकृति के यहां और भी कई अनूठे रंग हैं। कहीं सुंदर पत्थर, पारदर्शी क्रिस्टल जो देखने में टोपाज जैसे होते है, मिल जाते हैं। तो कहीं चट्टानें अपना अलग ही आकार ले लेती हैं जैसे कि बीच सडक पर टकी ईगल्स नोज जो दूर से बिल्कुल किसी बाज के सिर जैसी लगती है। प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को सुंदर ड्रिफ्टवुडस या फिर जंगली फूल-पत्ते मिल जाते हैं, जो उनके अतिथि कक्ष का स्मरणीय अंग बन जाते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक स्मृतियों के स्थायी साक्ष्य बने रहते हैं।
 
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