परिचय सम्मेलन- स:शुल्क बनाम नि:शुल्क।

 परिचय सम्मेलन-  स:शुल्क बनाम नि:शुल्क। 
       समाज की सहभागिता या समाज के हित में समाज के अग्रणी ओर समाज सेवकों द्वारा के क्षेत्र में कई कार्य किए जाते रहें हें।   तदनुसार समाज इन सभी संस्कारों को मिलकर सामूहिक रूप से सम्पन्न करता रहा है। 
             देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् समाज में पुन: चेतना ओर विचार शक्ति का परिणाम रूप में सामुहिक विवाह / यज्ञोपवीत / परिचय आदि सम्मेलनो ने फिर से अपना महत्व स्थापित किया है। लेकिन इस अर्थ-प्रधान समाज वादी, वर्तमान व्यवस्था ने समाज के इन कार्यो पर जैसे अंकुश लगा रखे है, इससे ये समस्त कार्य व्यक्तिगत बन गए है।
        समाज के इस व्यवहार के परिणामस्वरूप नयी सामाजिक चेतना ने, बिना उनका विरोध किए, सामूहिक विवाह  ओर परिचय सम्मेलनो आदि का आयोजन भी प्रारम्भ कर दिया है, पर बिना धन के कोई भी कार्य तो संभव नहीं, इस हेतु चन्दा आदि द्वारा कार्य सम्पन्न करने की कोशिश की गई, पर यहाँ भी 'चंदा चोर' सक्रिय हो गए ओर स्वछ  छवि वाले भी चंदे से वंचित होने लगे। धन न हो तो समाज का काम आगे कैसे बढ़े ? 
      इन सभी कारणौ ने एक नयी व्यवस्था को जन्म दिया।  परिणाम स्वरूप थोड़ी सी राशि ओर कुछ विज्ञापन ने इस आर्थिक कष्ट को दूर कर इन कार्यों को नई दिशा दी। इस दिशा में जैसे, परिचय सम्मेलन में प्रति प्रविष्ठी लगभग 200/- से 300/- रुपये लेकर सारी व्यवस्था की जाने लगी है। 
    इसमें यदि व्यय का हिसाब देखे, तो निम्न अनुसार होता है। [उज्जैन परिचय सम्मेलन 2010 ओर 11 में हुए व्यय के अनुसार], एक परिचय सम्मेलन में प्रत्याशी ओर माता-पिता सहित तीन व्यक्ति उपस्थित होते हें। प्रत्येक को एक पुस्तक जिसमें सभी प्रविष्टियाँ होतीं हें, अंकित रहती हें, दी जाती है। वर्तमान में जिस प्रकार की परंपरागत पुस्तिका छपवाई जाती हें, उस एक प्रति की लागत लगभग 150रु से 200रु तक आती है, यह भी उसमें प्रयुक्त रंगीन पृष्ठ/ ग्लेज पेपर आदि पर निर्भर करती है। उज्जैन शहर को छोड़कर अन्य स्थानो से आने वाले प्रतिभागियों के एक दिन पहिले से ठहरने ओर कार्य-कर्म के दिन/ भोजन चाय नाश्ते की व्यवस्था / पांडल/ आदि अन्य व्यय प्रति प्रविष्टि जिसमें तीन व्यक्ति होते हें, कम से कम 200/- रु भी जोड़ लिया जाए तो भी प्रति प्रविष्टि व्यय लगभग 400 से 500 /- रु होता है। तो फिर क्या यह नहीं सोचा जाना चाहिए की इस प्रकार से कुछ शुल्क लेकर यदि व्यवस्थापक गण व्यवस्था करते हें, तो क्या यह भी निशुल्क जैसा ही नही है। जब समाज के सभी सदस्य किसी भी प्रकार का मासिक/वार्षिक अनुदान आदि समाज को नहीं देते, केवल थोड़ी सी धनराशि 100 से 200/-रु तक देकर वह भी 10 से 15% व्यक्ति ही, औदीच्य समाजिक संगठनो की आजीवन सदस्यता मात्र लेते हो, तो वह समाज संगठन निशुल्क सम्मेलन आदि कैसे आयोजित कर सकता है।    
फिर होने वाले व्यय की पूर्ति केसे होगी? 
     वास्तव में यह व्यय सारे समाज द्वारा किया जाने वाला सामाजिक सहयोग है, जिसमें जिसे इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ नहीं भी होता, वह भी विज्ञापन/सहायता आदि के रूप में आर्थिक मदद करता है। 
               एक यदि सभी प्रविष्ठार्थी यदि टोकन रूप में स्वयं पर हुए व्यय की आधी राशि एंट्री फी के रूप में यदि दे देते हें, तो न केवल वे इसके प्रति अधिक जागरूक हो जाते हें, वरन मुफ्त में पाने से उत्पन्न लापरवाही की प्रवृत्ति भी उनमें नहीं पनपती, जो कठिनाइयों का एक प्रमुख कारण होता है। साथ ही इससे उनके  उन्हे मिलने वाली पुस्तक ओर अन्य व्यवस्था तो सुरक्षित हो ही जाएगी,जिससे उनके छपवाने के साथ ही आयोजको पर भोजन, आवास आदि व्यवस्था का एक लक्ष्य मिलेने से व्यवस्था सहज हो सकेगी। फिर नि:शुल्क सम्मेलन में भी तो पत्रिका के 100 या 200 रु/- , भोजन व्यय कहीं भी भी प्रति व्यक्ति 50 से 100/-  रु. ओर बाहर के व्यक्तियों को रात्री होटल आदि व्यय करना ही होगा। एसे में नि:शुल्क का क्या अर्थ?
     समाज के क्षेत्र में सेवा में प्रतिस्पर्धा होना तो समाज के लिए एक महत्व पूर्ण अच्छी बात है, पर जब यह आत्मसम्मान या अहंकार का विषय बन जाए तो फिर हो चुकी समाज सेवा। एसी समाज सेवा दीर्घ जीवी नहीं होती वरन अहंकार का तूफान थमते ही हवा के बुलबुले की तरह बैठ जाती है। हम प्रतिस्पर्धा तो करें पर अच्छे उद्देश्य को लेकर ओर उसमें भी सभी सहभागी बने प्रतिस्पर्धी के सामने कांटे न खड़े करें। एसा करने वाले कभी भी अच्छे समाज सेवक नहीं कहला सकते। अच्छे समाज सेवक उस सूर्य की तरह होते हें, जो अपनी पहचान स्वयं है।
     हमको चाहिए की स:शुल्क-नि:शुल्क के इस अहंकारिक मतभेद से आगे चल कर वास्तविकता के धरातल पर समाज को सहयोग दें, तभी हमारा समाज भी वास्तविक सभ्य ब्राम्हण कहला सकेगा। 
   उज्जैन में अगला परिचय सम्मेलन दिसम्बर 2013 को इन्ही आधारो पर करने का प्रयत्न किये जाने की संभावना है।  इसके लिए सभी का  सहयोग भी अति महत्वपूर्ण होगा। 
 अस्तु। 
डॉ मधु सूदन व्यास 
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इसका प्रकाशन समाज हित में किया जा रहा है,सभी बंधुओं से सुझाव/सहायता की अपेक्षा है।